विषैले व विषहीन सर्पों में अंतर ,venom nonvenomous

 उत्तर-विषैले व विषहीन सर्पों में मुख्य अंतर-अधिकांश सर्प विषहीन तथा नुकसानरहित होते है। भारत में पाये जाने वाले विषैले सर्प निम्न हैं-कोबरा, क्रेत, पिट-वाइपर, रैटल सर्प आदि।


विषैले एवं विषहीन सर्पों को बाह्य लक्षणों के आधार पर आसानी से पहचाना जा सकता है। इसके लिये किसी विशेष उपकरण की आवश्यकता नहीं होती है। विषैले सर्प के काटने पर त्वचा पर दो बड़े घाव बनते हैं, जो विषदन्तों के देह पर गड़ने के कारण बनते हैं किन्तु विषहीन सर्पों में विषदन्त नहीं पाये जाते। सामान्य सर्प के दाँत से काटने पर केवल हल्के गड़ने के चिन्ह बनते हैं। विषैले व विषहीन सर्पों को इनकी पुच्छ की आकृति, देह के अमाय, शल्कों एवं शील्ड्स की देह पर व्यवस्था के द्वारा पहचान कर अन्तर किया जाता है।


1. पावों में चपटी पूँछ वाले सर्प जलीय तथा बेलनाकार पूँछ वाले स्थलीय होते हैं। जलीय जातियों में समुद्री सर्प सब विषैले तथा अलवणजलीय विषहीन होते हैं। समुद्री सर्पों के सिर पर नेत्रों के बीच की शल्कें बड़ी-बड़ी परन्तु अलवणजलीय सर्पों में छोटी-छोटी होती हैं।


2. स्थलीय सर्पों में पृष्ठ तथा अधरतलों पर छोटी-छोटी एक सी शल्कों वाले सर्प जैसे कि दुमुँही विषहीन होते हैं। अन्य में अधरतलीय शल्कें बड़ी व चौड़ाई में फैली होती हैं। यदि ये पूरी चौड़ाई में आर-पार न फैली हों और उनके पावों में पृष्ठ शल्कें दिखाई देती हों (जैसे अजगर में) तो भी सर्प विषैला नहीं होता। इसके विपरीत, यदि शल्कें पूरी चौड़ाई में आर-पार फैली हों और इनके पाश्र्व में पृष्ठ शल्कें न दिखाई देती हों तो सर्प विषैला नहीं होता। इसके विपरीत, यदि ये शल्कें पूरी चौड़ाई में आर-पार फैली हों और इनके पावों में पृष्ठ शल्कें न दिखाई देती हों तो सर्प विषैला हो सकता है। इसकी पहचान अब सिर के शल्कों से कर सकते हैं।


3. यदि सिर पर छोटी-छोटी समान शल्कें हैं तो वाइपर श्रेणी का विषैला सर्प होता है। सिर पर बड़ी शल्कों वाले सर्प विषैले हो सकते हैं या विषहीन ।


4. सिर पर बड़ी शल्कों वाले वे सर्प जिनमें नेत्रों एवं बाह्य नासाद्वारों के बीच एक-एक गढ्डा सा होता है विषैले पिट वाइपर (Pit viper) होते हैं तथा वे जिनमें ऊपरी होंठ के पाश्र्व की तीसरी शल्कें अपनी-अपनी ओर के नेत्र एवं नासा शल्क (nasal sac) दोनों को छूती है, नाग या कोबरा श्रेणी के विषैले सर्प होते हैं।


5. उपर्युक्त लक्षणों की अनुपस्थिति में पीठ की शल्कें देखी जाती हैं। पीठ पर बीचों-बीच कुछ बड़ी एवं षटकोण शल्कों की एक पंक्ति वाले सर्प विषैले करैत (kraits) होते हैं। इनमें सिर की शल्कें बड़ी, पीठ पर अनुप्रस्थ धारियाँ तथा निचले होंठ के पार्श्वों की चौथी शल्कें बड़ी-बड़ी होती हैं।


इनके अतिरिक्त विषैले सर्पों में केवल एक या दो जोड़ी नालिका युक्त विषदन्त (fangs) होते हैं, जबकि विषहीन सर्प में ऊपरी जबड़े के प्रत्येक अर्धभाग में दाँतों की एक पंक्ति होती है। यदि सर्प के शीर्ष पर छोटी या बड़ी शल्कें हुईं लेकिन उनमें नाग-करैत तथा प्रवाल सर्प के लक्षण नहीं हैं तब वह विषहीन सर्प है।


यह अनुमान लगाने के लिए की मनुष्य को विषैले सर्प ने काटा है या नहीं निम्नलिखित चार बातों का ध्यान रखना आवश्यक है


(ii) घाव से लगातार सीरम का बहना तथा लाल रंग के द्रव का स्रावित होना। (iii) घाव के आस-पास के भाग का रंगहीन हो जाना।


(i) काटे हुये भाग पर केवल एक या दो दांतों के निशानों का होना। (iv) सूजन आ जाना। जा सकता


इन चारों बातों में से कोई भी चिन्ह न हो तो निश्चयपूर्वक कहा है  कि काटने वाला सर्प विषहीन है।

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